ऐन कॉलियर
युवाओं से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाली ऐन कॉलियर एक
लेखिका हैं. वह साल 1997 से 'युवा और डिजिटल
मीडिया' विषय पर हुई सार्वजनिक चर्चाओं पर लिख रही हैं.
ऐन, अमेरिका की गैर-लाभकारी संस्था 'द नेट सेफ़्टी
कोलैबोरेटिव' की फ़ाउंडर और एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर
हैं. इस संस्था का सबसे अहम काम अमेरिका के स्कूलों के लिए
सोशल मीडिया हेल्पलाइन चलाना है. ऐन ने युवाओं और इंटरनेट
सेफ़्टी से जुड़ी तीन नैशनल टास्क फ़ोर्स में काम किया है.
इन्होंने ओबामा प्रशासन के दौरान ऑनलाइन सेफ़्टी ऐंड
टेक्नोलॉजी वर्किंग ग्रुप में बतौर को-चेयरपर्सन काम किया और
नैशनल इंटरनेट सेफ़्टी टेक्निकल टास्क फ़ोर्स ऑफ़ 2008 से भी
जुड़ी रही हैं. इन्होंने साल 2013-14 में गैर-लाभकारी संगठन
ऐस्पन इंस्टिट्यूट की 'टास्क फ़ोर्स ऑन लर्निंग ऐंड दी
इंटरनेट' में काम किया है.
ऐलिसन ब्रिस्को-स्मिथ
ऐलिसन ब्रिस्को-स्मिथ, बच्चों की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट हैं,
जिन्हें लाइसेंस मिला है. इनका करियर अकादमिक दुनिया और
प्रोग्राम डेवलपमेंट के इर्द-गिर्द रहा है. इन्होंने उन
बच्चों और परिवारों के साथ काम किया है जो किसी न किसी वजह
से सदमे का शिकार हुए. ऐलिसन, नस्लीय भेदभाव के शिकार लोगों
को इंसाफ़ दिलाने के लिए भी काम करती हैं. ऐलिसन, Soft River
Consultation की फ़ाउंडर होने के साथ-साथ इसकी प्रमुख भी हैं.
इसके ज़रिए ऐलिसन, समाज में फैले भेदभाव को खत्म करने के लिए
काम करने वाली संस्थाओं की मदद करती हैं, उनके लिए प्रोग्राम
तैयार करती हैं, और उन्हें ज़रूरी सुविधाएं उपलब्ध कराती
हैं.
अमैंडा थर्ड
प्रोफ़ेसर अमैंडा थर्ड (पीएचडी), इंस्टिट्यूट फ़ॉर कल्चर ऐंड
सोसाइटी में प्रोफ़ेसरल रिसर्च फ़ैलो हैं. साथ ही, वेस्टर्न
सिडनी यूनिवर्सिटी के यंग ऐंड रेसिलिएंट रिसर्च सेंटर की
को-डायरेक्टर हैं. इसके अलावा, साल 2020 से लेकर 2023 तक, ये
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बर्कमेन क्लाइन सेंटर फ़ॉर इंटरनेट
ऐंड सोसाइटी की फ़ैकल्टी असोसिएट भी रही हैं. अमैंडा, युवाओं
को ध्यान में रखकर और उन्हें शामिल करके की जाने वाली रिसर्च
की अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ हैं. वे इस बात पर रिसर्च करती
हैं कि बच्चे और युवा, टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किस तरह से कर
रहे हैं. उनका खास ध्यान, सामाजिक तौर पर पिछड़े समूहों पर
और उन्हें अधिकारों का सही इस्तेमाल समझाने पर रहता है.
उन्होंने 70 से ज़्यादा देशों में, बच्चों को ध्यान में रखकर
बनाए गए कई प्रोजेक्ट पर काम किया है. इससे उन्हें यह समझने
में मदद मिली कि बच्चों को इस डिजिटल युग में कैसा महसूस
होता है. इसके लिए, उन्होंने कॉर्पोरेट, सरकारी, और
गैर-लाभकारी सेक्टर से जुड़े कई पार्टनर के अलावा, बच्चों और
युवाओं के साथ मिलकर काम किया.
ऐलन सैल्की
डॉक्टर सैल्की ने, यूनिवर्सिटी ऑफ़ विस्कॉन्सन के स्कूल ऑफ़
मेडिसिन ऐंड पब्लिक हेल्थ से मेडिकल और एमपीएच (मास्टर ऑफ़
पब्लिक हेल्थ) की डिग्री हासिल की है. फ़िलहाल, वे इस
यूनिवर्सिटी में बाल चिकित्सा की असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं.
वे छोटे बच्चों और किशोरों को रोगों से बचाने के तरीकों और
उनका खास ख्याल रखने के लिए काम करती हैं. डॉक्टर सैल्की एक
क्लिनीशियन साइंटिस्ट हैं. वे सामाजिक तौर पर पिछड़े किशोरों
के साथ सोशल मीडिया पर हो रही गलत गतिविधियों को कम करके,
सही गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहती हैं. वे खास तौर पर
LGBTQ+ कम्यूनिटी के युवाओं के लिए यह काम करना चाहती हैं.
जेसिका पित्रोवस्की
डॉक्टर जेसिका टेलर पित्रोवस्की, यूनिवर्सिटी ऑफ़ एम्सटर्डैम
(यूवीए) के एम्सटर्डैम स्कूल ऑफ़ कम्यूनिकेशन रिसर्च
(एएससीओआर) में प्रोफ़ेसर हैं. ये इस यूनिवर्सिटी की,
कम्यूनिकेशन इन दी डिजिटल सोसाइटी की चेयरमैन हैं. डॉक्टर
पित्रोवस्की की रिसर्च से यह पता चलता है कि व्यक्तिगत और
सामाजिक-सांस्कृतिक तौर पर बच्चों में अंतर होने से, इन
बातों पर कैसे असर पड़ता है: बच्चे कौनसा मीडिया देखते हैं,
उसका इस्तेमाल कैसे करते हैं, और उसे प्रोसेस कैसे करते हैं.
इनके अलावा, रिसर्च में अन्य बातों से पड़ने वाले असर के
बारे में भी पता चलता है. रिसर्च में खास तौर पर फ़ोकस उन
चीज़ों पर रहता है जिनसे युवाओं के लिए डिजिटल मीडिया का
अनुभव बेहतर बनाया जा सकता है.
जस्टिन पैचिन
वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ विस्कॉन्सन-ओ क्लेयर में क्रिमिनल जस्टिस
के प्रोफ़ेसर हैं. जस्टिन पैचिन की रिसर्च इस बात पर आधारित
है कि किशोर, टेक्नोलॉजी का कैसे इस्तेमाल करते हैं. वे खास
तौर पर साइबरबुलिंग (इंटरनेट पर धमकी), सोशल नेटवर्किंग, और
सेक्स चैटिंग पर फ़ोकस करते हैं. वे काउंसलर, कानूनी
कार्रवाई करने वाले ऑफ़िसर, माता-पिता/अभिभावकों, शिक्षकों,
और युवाओं को, टेक्नोलॉजी का गलत इस्तेमाल करने से बचने के
तरीकों की ट्रेनिंग देने के लिए अक्सर यात्रा करते रहते हैं.
करीम एडुअर्ड
करीम एडुअर्ड, ड्रेक्सल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ एजुकेशन
में लर्निंग टेक्नोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं. साथ ही,
वे ओले ग्रीन्स ग्रुप के मीडिया कंसल्टेंट हैं. डॉक्टर
एडुअर्ड ने स्टैनफ़र्ड के ग्रैजुएट स्कूल ऑफ़ एजुकेशन से,
लर्निंग साइंसेज़ ऐंड टेक्नोलॉजी डिज़ाइन में पीएचडी की है.
इनकी दिलचस्पी इन विषयों पर रिसर्च करने में है: नस्ल और
संस्कृति आपस में किस तरह जुड़े हैं और अफ़्रीक्री या दूसरे
मूल के छात्र-छात्राओं की दिलचस्पी, एसटीईएएम (साइंस,
टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, आर्ट, मैथ) वाले विषयों में कैसे
बढ़ाई जाए. एक कंसल्टेंट के तौर पर, डॉक्टर एडुअर्ड अपने
वीडियो में क्रिएटिविटी दिखाने और कॉन्टेंट डेवलपमेंट पर
फ़ोकस करते हैं. इसमें वे संस्कृति, नई-नई चीज़ें सीखने की
रणनीति, और सभी को शामिल करने पर ज़ोर देते हैं.
मीमी इटो
मीमी इटो, डिजिटल कल्चर पर फ़ोकस करने वाली कल्चरल
एंथ्रोपोलॉजिस्ट हैं. वे कनेक्टेड लर्निंग (साथ मिलकर चीज़ें
सीखना) को बढ़ावा देती हैं. इसमें युवाओं और उनकी दिलचस्पी
को ध्यान में रखकर जानकारी दी जाती है. साथ ही, इसमें लोग
दूसरों के काम पर ध्यान देकर, खुद वह काम करना सीखते हैं. वे
Connected Camps की को-फ़ाउंडर हैं. यह एक बेनिफ़िट
कॉर्पोरेशन (समाज के विकास के साथ-साथ कारोबार करने वाली
कंपनी) है. यह कंपनी, समाज के अलग-अलग तबकों से आने वाले
बच्चों को ऑनलाइन प्लैटफ़ॉर्म पर क्रिएटिविटी के साथ नई-नई
चीज़ें सीखने के मौके देती है. इटो ने टेक्नोलॉजी में रुचि
रखने वाले लोगों, गेमर, प्रशंसकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, और
कलाकारों पर लंबे समय तक रिसर्च की है. इस रिसर्च से उन्हें
पता चला कि बच्चे अपनी मनपसंद चीज़ें उन लोगों के साथ
ज़्यादा अच्छे से सीखते हैं जो उन्हें समझने के साथ-साथ
प्रेरित करते हैं.
समीर हिंदुजा
डॉक्टर समीर हिंदुजा को सोशल मीडिया के इस्तेमाल को सुरक्षित
बनाने और साइबरबुलिंग के ख़िलाफ़ अपने बेहतरीन कामों के लिए,
दुनिया भर में जाना जाता है. इन्होंने सात किताबें लिखी हैं.
साथ ही, अलग-अलग फ़ील्ड में इनकी रिसर्च तकरीबन 20,000 से
ज़्यादा बार इस्तेमाल की जा चुकी है. विशेषज्ञ के तौर पर,
डॉक्टर हिंदुजा अक्सर मीडिया से बात करते रहते हैं. साथ ही,
वे छात्र-छात्राओं, शिक्षकों, माता-पिता/अभिभावकों,
मनोचिकित्सकों, और तकनीकी विशेषज्ञों को यह सिखाते हैं कि
टेक्नोलॉजी के सही इस्तेमाल को ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ावा
कैसे दें.
सैरा एम॰ कॉइन
डॉ॰ सैरा एम॰ कॉइन, ब्रिगम यंग यूनिवर्सिटी में मौजूद स्कूल
ऑफ़ फ़ैमिली लाइफ़ में, मानव विकास की प्रोफ़ेसर हैं. वे
नियमित तौर पर, किशोरों और परिवारों से बातचीत करती हैं और
उन्हें मीडिया के सही इस्तेमाल के बारे में बताती हैं.
उन्होंने यूटा स्टेट यूनिवर्सिटी से, मनोविज्ञान में अपनी
बीएससी की डिग्री हासिल की. साथ ही, यूनिवर्सिटी ऑफ़ सेंट्रल
लैंकशियर प्रेस्टन, इंग्लैंड से मनोविज्ञान में अपनी पीएचडी
पूरी की. रिसर्च के मामलों में, वे इन विषयों में दिलचस्पी
रखती हैं: मीडिया, अग्रेशन, जेंडर, मेंटल हेल्थ, और चाइल्ड
डेवलपमेंट. इन विषयों और अन्य विषयों पर डॉ॰ कॉइन के 200 से
ज़्यादा लेख प्रकाशित हुए हैं. उनके पांच बच्चे हैं और वे
यूटा में रहती हैं.
सन सन लिम
सन सन लिम, सिंगापुर मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी में कम्यूनिकेशन
ऐंड टेक्नोलॉजी की प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने मीडिया और
परिवारों पर काफ़ी कुछ लिखा है. इनकी किताबों में ये शामिल
हैं: ट्रांसेंडेंट पैरंटिंग: रेज़िंग चिल्ड्रन इन दी डिजिटल
ऐज (साल 2020 में ऑक्सफ़र्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने पब्लिश की)
और मोबाइल कम्यूनिकेशन ऐंड दी फ़ैमिली (साल 2016 में
स्प्रिंगर ने पब्लिश की). वे मीडिया लिटरेसी काउंसिल की
सदस्य हैं. साल 2018 से 2020 तक, वे सिंगापुर पार्लियामेंट
की मनोनीत सदस्य भी रहीं. वहां उन्होंने बच्चों को डिजिटल
प्लैटफ़ॉर्म पर मिलने वाले अधिकारों, एआई का ज़िम्मेदारी से
इस्तेमाल करने, और डेटा शेयरिंग जैसे मुद्दों पर आवाज़ उठाई.
थियागो तवारेज़
थियागो तवारेज़, SaferNet के फ़ाउंडर और प्रेसिडेंट हैं. यह
संस्था, ब्राज़ील में इंटरनेट को सुरक्षित बनाने के लिए 18
साल से काम कर रही है. SaferNet, ब्राज़ील की पहली ऐसी
गैर-सरकारी संस्था है जो डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म पर बच्चों के
अधिकारों को सुरक्षित रखने और मानव अधिकारों को बढ़ावा देने
के लिए, अलग-अलग संस्थाओं के साथ मिलकर काम करती है. साल
2005 से, ब्राज़ील में बच्चों की सुरक्षा के लिए हॉटलाइन,
हेल्पलाइन, और अवेयरनेस हब तैयार करने में SaferNet की अहम
भूमिका रही है. बच्चों की सुरक्षा, डिजिटल सुरक्षा, और
इंटरनेट गवर्नेंस (इंटरनेट पर लागू होने वाले नियम) पर पिछले
15 साल में किए गए तवारेज़ के काम को 30 से ज़्यादा देशों
में प्रज़ेंट किया गया है. संयुक्त राष्ट्र के इंटरनेट
गवर्नेंस फ़ोरम (आईजीएफ़) के नौ सम्मेलनों में भी इनके काम
को प्रज़ेंट किया जा चुका है.
याल्डा टी॰ उल्स
याल्डा टी॰ उल्स, अंतरराष्ट्रीय स्तर की रिसर्च साइंटिस्ट
हैं, जो अवॉर्ड जीत चुकी हैं. वे यूसीएलए में एडजंक्ट
प्रोफ़ेसर हैं. इन्होंने 'मीडिया मॉम्स ऐंड डिजिटल
डैड्स: ए फ़ैक्ट नॉट फ़ियर अप्रोच टू पैरंटिंग इन द डिजिटल
ऐज' नाम की किताब भी लिखी है. वे सेंटर फ़ॉर स्कॉलर्स
ऐंड स्टोरीटैलर्स की फ़ाउंडिंग डायरेक्टर हैं. यह यूसीएलए में
स्थित, रिसर्च करने वाली एक संस्था है. यह संस्था, सामाजिक
विज्ञान पर होने वाली रिसर्च और मीडिया क्रिएशन को एक साथ
लाने का काम करती है, ताकि युवाओं के बारे में सही और बिना
किसी भेदभाव के कही जाने वाली कहानियों को बढ़ावा मिले.
मीडिया कॉन्टेंट कैसे बनाया जाता है और इस कॉन्टेंट का
बच्चों पर क्या असर होता है, इसे लेकर डॉक्टर उल्स की समझ एक
खास नज़रिया पेश करती है.